लाख अपना बनाया इसको, पर हमसे ये बेगानी रही
जीते रहे कुछ किरदार हम, ये उसकी लिखी कहानी रही
समझ जहाँ दिखलाई, शह उसकी नादानी रही
और बचपन सा जब होए हम, हमसे ये सायानी रही
बाजी एक होती तो कब हार नामंजूर थी तुझसे रकीब
शिकवा ये की बदल बहाने तेरी जीत आनी जानी रही
बुनते रहे हम खवाब और ये कल की निशानी रही
उलझी जितना सुलझाया, ऐसी पहेली जिंदगानी रही
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