एक हसरत थी की हसरत की हसरत बन पायें ,दुआ मेरी कभी मेरे नाम को सदायें दे
मेरे खुदा ने मेरी बातें तो रखी ,बस हर उस दुआ को हसरत बना दिया
एक हसरत थी की बस देखता रहूँ उसको डूबा, धड़कने बातें करें यूँ की साँसों के अल्फाज़ बने
खामोशी भी मिली, बातें भी हुई ,बस ख्वाबों को हकीकत ने फसाना सुना दिया
एक हसरत थी की यूँ ही, जरा फासले तक साथ चलें,कुछ दो निशनो को एक बना जायें
सफर भी मिला , निशान भी लगे बनने ,बस हवाओं ने लहरो को भी हमसफर बना दिया
एक हसरत थी की आखरी साँसे उसके दामन में बीतें,
और बची ज़िन्दगी को इन लम्हों का बहाना हो
बहाना भी वही ,तमन्ना भी वही,
बस उसने मेरी साँसों को अपना बता दिया
Wednesday, March 31, 2010
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