Wednesday, March 31, 2010

solved the unsolvable

यादों में बसा कर साँसों में समां कर
बातों में जिला कर या धड़कन बना कर
क्या तरीका होगा कि मोहब्बत तेरी
जीने मरने के फेरे से जुदा कर पाउँ

कोई मंजिल नही कोई हासिल नही
साथ तेरा बस चलने का सबब है मेरे
क्या तरीका होगा कि राही को अपने
सफर के बाद भी कभी यूँ ही संग चला पाउँ

कुछ मुझ सा कुछ उस जैसा दिखता है तू
कुछ चाहत मेरी कुछ मेरी इबादत है
क्या तरीका होगा होगा कि एका हो पाए
या खुदा बने इंसा या मैं खुदा हो पाउँ

मुमकिन नही लेकिन साँसो की डोर तोड़ पाना
मुश्किल है किसी राही को भी अपनी राह छोड़ पाना
क्या हो पाएगा खुदा भी मुझ सा मनमौजी
आवारगी को भी तेड़ा है खुदा हो जाना

तो चलो यूँ करते हैं
कि हो कर दूज़े का ख़ुद को धागों से आज़ाद करते हैं
किसी मोड़ पर तो एक होंगी ये दो राहें
चलते चलते कदमों में बस उसकी राह तकते हैं

सुना है न मैंने खुदा को न मुझको खुदा ने देखा
तो हम भी एक दूज़े को बस 'एक अजनबी' रहते हैं
तो हम भी एक दूज़े को बस ..........

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