Thursday, April 1, 2010

to one of the most precious soul of my life

न सितारा है वो मेरे फलक का, न ऐसा कि बिन उसके आँगन अँधियारा है
न हमसफ़र है राहों का मेरे, न ही सफ़र में मील का पथहर

कभी हंसी है देता, कभी आंसू लाता है
कुछ नाम में है जिन्दा, कुछ अहसास में आता है

कुछ क़दमों का साथ, अब तलक यही उससे पहचान है
वो बहता दरिया मैं भटकती हवा, सिवाए इसके हम अनजान हैं

पर खुशियाँ जाने क्यों उसके बिन, अधूरी सी होती हैं
कमतर होता है अँधियारा सँग उसके, वो न हो तो मंज़िल बेजरुरी होती है

नहीं मालूम
तू कौन है, क्या है , क्यों मेरी जिंदगी में आया
कभी धूप है तू , तो कभी घनी छाया
जब तलक साथ है तू , बटोर लेता हूँ यादे सारी
कब्र में सोचूँगा फुर्सत से, इसमें क्या खो दिया इसमें क्या पाया

No comments:

Post a Comment