Monday, April 5, 2010

die every moment to live every moment

पंख न थे, उड़ने की चाहत थी मगर
तो हवाओं में ही हम कदम बढ़ाने लगे
धुंधली मंज़िल थी पर चलने की मोहब्बत में
चुन डगर अपनी, मील के पत्थरों से मंज़िल बनाने लगे
नींद गुम थी, रातों से भी हो गई थी यारी
कर सूखी आँखे नम, जागते पलों में सपने सजाने लगे
दर्द आया जब खुशियों के खातों से भी
छोड़ फ़िक्र जी कर उसके लिए, रोते रोते ही मुस्कुराने लगे
ठंडा था चिराग मेरा, अँधेरे रास आये उसको
करने रोशन नयी राहें, पुरानी यादें जलाने लगे
जीना हो हर पल, कर दोस्ती मौत से
तरीका जीने का समझने, क्यों साहिल तुझे इतने बहाने लगे

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